Saturday, September 10, 2011

फिल्म तब्सेरा

10th September 2011

फिल्म तब्सेरा
सिंघम
मज़हरहसनैन ,जेएनयू नई दिल्ली
बैनर : रिलायंस एंटरटेनमेंट
निर्देशक : रोहित शेट्टी
संगीत : अजय-अतुल
कलाकार : अजय देवगन, काजल अग्रवाल, प्रकाश राज, सोनाली कुलकर्णी, सचिन खेड़ेकर, अशोक सराफ
सेंसर ‍सर्टिफिकेट : यू/ए * 2 घंटे 25 मिनट
रेटिंग : 3.5/5
पिछले कुछ वर्षों में ग्रे-शेड और रियल लाइफ जैसे हीरो ने बॉलीवुड पर अपना कब्जा जमा लिया और व्हाइट तथा ब्लेक कलर वाले किरदार हाशिये पर आ गए। दर्शकों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिन्हें ऐसे हीरो पसंद है जो चुटकियों में बीस गुंडों को धूल चटा दे, लड़कियों को छेड़ने वाले को सबक सिखाए, बड़ों की इज्जत करे, रोमांस करने में शरमाए।
ऐसे हीरो को पसंद करने वाले टीवी पर साउथ की हिंदी में डब की गई फिल्मों को देख अपना मनोरंजन करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में टीवी पर दिखाई जाने वाली इन फिल्मों की टीआरपी में काफी इजाफा हुआ है।
इस वाकिये और गजनी, दबंग, वांटेड और वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई की सफलता ने फिल्मकारों का ध्यान उन दर्शकों की पसंद की ओर खींचा है जो अस्सी के दौर के हीरो को अभी भी पसंद करते हैं, लिहाजा इस तरह की कई फिल्मों का निर्माण बॉलीवुड में चल रहा है। दक्षिण में अभी भी इन फिल्मों का चलन है इसलिए उन फिल्मों के रीमेक बॉलीवुड स्टार्स के साथ बनाए जा रहे हैं।
‘सिंघम’ तमिल में इसी नाम से बनी सुपरहिट फिल्म का हिंदी रिमेक है। शुरुआत के चंद मिनटों बाद ही पता चल जाता है कि इस फिल्म का अंत कैसा होगा, लेकिन बीच का जो सफर है वो फिल्म को मनोरंजन के ऊँचे स्तर पर ले जाता है। तालियों और सीटियों के बीच गुंडों की पिटाई देखना अच्छा लगता है।
बाजीराव सिंघम (अजय देवगन) शिवगढ़ का रहने वाला है और वहीं पर पुलिस इंसपेक्टर है। गांव वालों का वह लाड़ला है क्योंकि हर किसी को वह न्याय दिलाता है। उसका रास्ता जयकांत शिक्रे (प्रकाश राज) से टकराता है, जिसका गोआ में दबदबा है। जयकांत राजनीति में इसीलिए आया है ताकि पॉवर के सहारे वह मनमानी कर सके। जब शिवगढ़ में उसकी नहीं चलती है तो वह सिंघम का ट्रांसफर गोआ में उसे सबक सिखाने के लिए करवा देता है। गोआ जाकर सिंघम को समझ में आता है कि जयकांत कितना शक्तिशाली है। नेता, अफसर और पुलिस के बड़े अधिकारी या तो उसके लिए काम करते हैं या फिर डरते हैं। कानून की हद में रहकर अन्य पुलिस वालों के साथ सिंघम किस तरह जयकांत का साम्राज्य ध्वस्त करता है, यह फिल्म में ड्रामेटिक, इमोशन और एक्शन के सहारे दिखाया गया है।
युनूस सजवाल की लिखी स्क्रिप्ट में वे सारे मसाले मौजूद हैं जो आम दर्शकों को लुभाते हैं। हर मसाला सही मात्रा में है, जिससे फिल्म देखने में आनंद आता है। बाजीराव सिंघम में बुराई ढूंढे नहीं मिलती तो जयकांत में अच्छाई। इन दोनों की टकराहट को स्क्रीन पर शानदार तरीके से पेश किया गया है।
फिल्म इतनी तेज गति से चलती है कि दर्शकों को सोचने का अवसर नहीं मिलता है। लगभग हर सीन अपना असर छोड़ता है, जिसमें से जयकांत का भाषण देते वक्त सामने खड़े सिंघम को देख हकलाना, सिंघम और जयकांत की पहली भिड़त, पुलिस वालों की पार्टी में जाकर सिंघम का उन्हें झकझोरना, जयकांत को कैसे मारा जाए इसकी योजना जयकांत के सामने बनाना, हवलदार बने अशोक सराफ का ये बताना कि कितने कम पैसों में पुलिस वाले दिन-रात ड्यूटी निभाते हैं, सिनेमाघर के सामने काव्या को छेड़ने वालों की पिटाई करने वाले सीन उल्लेखनीय हैं। फिल्म का क्लाइमैक्स भी दमदार है।
एक्शन सीन में मद्रासी टच है और देखने में रोमांच पैदा होता है। ‘जिसमें है दम वो है फक्त बाजीराव सिंघम’ तथा ‘कुत्तों का कितना ही बड़ा झुंड हो, उनके लिए एक शेर काफी है’, जैसे संवाद बीच-बीच में आकर फिल्म का टेम्पो बनाए रखते हैं। कई संवाद मराठी में भी हैं ताकि लोकल फ्लेवर बना रहे, लेकिन ये संवाद किसी भी तरह से फिल्म समझने में बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं।
निर्देशक रोहित शेट्टी ने नाटकीयता को फिल्म में हावी होने दिया है और इससे फिल्म की एंटरटेनमेंट वैल्यू बढ़ी है। एक्शन, रोमांस और इमोशन दृश्यों का क्रम सटीक बैठा है और इसके लिए फिल्म के एडिटर स्टीवन एच. बर्नाड भी तारीफ के योग्य हैं। एक सीधी-सादी और कई बार देखी गई कहानी को रोहित ने अपने प्रस्तुतिकरण से देखने लायक बनाया है। फिल्म मुख्यत: दो किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है, इसके बावजूद बोरियत नहीं फटकती है। बाजीराव सिंघम के सिद्धांत, ईमानदारी, गुस्से को अजय देवगन ने अपने अभिनय से धार प्रदान की है। उनके द्वारा बनाई गई बॉडी किरदार का प्लस पाइंट लगती है। वे जब गुर्राते हैं तो लगता है कि सचमुच में एक सिंह दहाड़ रहा है। हीरो जब ज्यादा दमदार लगता है जब विलेन टक्कर का हो। प्रकाश राज एक बेहतरीन अभिनेता है और ‘सिंघम’ इस बात का एक और सबूत है। उन्होंने अपने किरदार को कॉमिक टच दिया है और कई दृश्यों को अपने दम पर उठाया है। काजल अग्रवाल के हिस्से कम काम था, लेकिन वे आत्मविश्वास से भरपूर हैं और अच्छी एक्टिंग करना जानती हैं। इनके अलावा मराठी फिल्म इंडस्ट्री के कई नामी कलाकार भी फिल्म में हैं। संगीत फिल्म का माइनस पाइंट है। एकाध गाने को छोड़ दिया जाए तो बाकी सिर्फ खानापूर्ति के लिए रखे गए हैं। यदि दो-तीन हिट गाने होते तो फिल्म का व्यवसाय और बढ़ सकता था।

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