मंटो की कलम उगलती थी आग
सआदत हसन मंटो
उर्दू अफसानानिगारों का जब भी जिक्र होता है, सआदत हसन मंटो की धुंधली यादें ताजा हो जाती हैं। साथ ही उनकी मशहूर कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ लोगों के जहन में चित्रित हो उठती है। हालांकि उनकी कलम के तीखे तेवरों और नग्न सच्चाइयों को लोगों ने अश्लीलता का नाम भी दिया, लेकिन इस कहानीकार की कलम कभी रुकी नहीं।
जन्मदिन 11 मई पर विशेष
उर्दू अफसानानिगारी के चार स्तम्भों (कृशन चन्दर, राजिन्दर बेदी और अस्मत चुगतई) में से एक सआदत हसन मंटो का शुमार ऐसे साहित्यकारों में किया जाता है, जिनकी कलम ने अपने वक्त से आगे के ऐसे अफसाने लिख डाले, जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही है।
नग्न सच्चाइयों ने नजरें फेरने के लिये उसे अश्लीलता का नाम देने वाली दुनिया को सच की बदनुमा तस्वीर भी देखने की दुस्साहसिक ढंग से प्रेरणा दे गए मंटो ने बेहूदगी फैलाने के कई मुकदमों का सामना किया। लेकिन यह साहित्यकार न कभी रुका और न ही थका।
शाहकार वक्त के मोहताज नहीं होते। मंटो ने इस बात को अक्षरश: सही साबित करते हुए महज 43 बरस की जिंदगी में उर्दू साहित्य को बहुत समृद्ध किया।
बीसवीं सदी के मध्य में ही दुनिया को अलविदा कह गए इस दूरदृष्टा साहित्यकार के विचारों की गहराई का अंदाजा लगाना आज भी आसान नहीं लगता।
उर्दू अफसानानिगार मुशर्रफ आलम जौकी ने कहा कि दुनिया अब धीरे-धीरे मंटो को समझ रही है और उन पर भारत और पाकिस्तान में बहुत काम हो रहा है लेकिन ऐसा लगता है कि मंटो को पूरी तरह समझ पाने के लिये 100 साल भी कम हैं।
जौकी के मुताबिक शुरुआत में मंटो को दंगों, फिरकावाराना वारदात और वेश्याओं पर कहानियां लिखने वाला सामान्य सा साहित्यकार माना गया था, लेकिन दरअसल मंटो की कहानियां अपने अंत के साथ खत्म नहीं होती हैं। वे अपने पीछे इंसान को झकझोर देने वाली सच्चाइयां छोड़ जाती हैं। उनकी सपाट बयानी वाली कहानियां फिक्र के आसमान को छू लेती हैं।
पढ़ने वालों को अपने अफसानों से चौंकाने के नायाब फन के मालिक मंटो ने उर्दू अदब को ‘ठंडा गोश्त’, ‘नंगी आवाजें’, ‘खोल दो’ और ‘काली शलवार’, जैसी महान कृतियां दीं, लेकिन जब वे लिखी गईं तो उन्हें महज ‘अश्लीलता’ परोसते दस्तावेज के अलावा और कुछ नहीं कहा गया। दरअसल वे कहानियां जिंदगी की उन पुरपेंच गहरी सच्चाइयों पर पड़े पर्दों को नोंच फेंकने की कोशिश थीं, जिनसे दुनिया हमेशा से नजर बचाती रही थी।
मंटो के कलम की मजबूती ही थी कि वर्ष 1947 से पहले तीन बार भारत में और फिर पाकिस्तान बनने के बाद वहां अश्लीलता फैलाने के तीन मुकदमे चलने के बावजूद वह कभी मुजरिम नहीं ठहराए जा सके।
मंटो को उर्दू अफसानानिगारी के अन्य स्तम्भों कृशन चन्दर, राजिन्दर बेदी और अस्मत चुगतई से अलग लेखक बताते हुए जौकी ने कहा कि उनकी राय में मंटो में पढ़ने वाले को झकझोरने की खूबी कहीं ज्यादा थी और हंसी-हंसी में इंसान की नब्ज़ पर हाथ रख देने के मंटो के फन की दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। मंटो के बगैर उर्दू अफ़साना निगारी का इतिहास अधूरा है।
मंटो ने देश के बंटवारे के वक्त अपनी पत्नी की जिद पर पाकिस्तान चले जाने की टीस को अपनी कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ में बड़ी शिद्दत से बयान किया है। यह कहानी उर्दू अफसानों के समुद्र का बेशकीमत मोती समझी जाती हैं।
मंटो ने 43 साल के छोटे से जीवन में रेडियो की नौकरी की, फिल्मों की पटकथा लिखी, पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया तथा कहानियां, उपन्यास, निबंध और नाटक लिखे। मंटो ने जिस तरह से अपनी रचनाओं में कभी कोई समझौता नहीं किया, ठीक उसी तरह उन्होंने अपना जीवन भी अपनी शर्तों पर जिया।
गजब का था। उनके अफ़सानों को एक बार पढ़ना शुरू किया जाये तो उसे बीच में नहीं छोड़ा जा सकता।
सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पंजाब के लुधियाना में हुआ था। स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही उनमें साहित्य के प्रति रुचि पैदा हो गई थी। वर्ष 1936 में उनका पहला कहानी संग्रह ‘आतिश पारे’ प्रकाशित हुआ था।
उर्दू अफ़सानानिगारी को नई शैली और बिल्कुल अलग मिजाज देने वाले इस महान कहानीकार ने 18 जनवरी 1955 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
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