Thursday, January 6, 2011

अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग व अल्पसंख्यक वर्गों के लिए शिक्षा,,,, मज़हर हसनैन ,जेएनयू नई दिल्ली

अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग व अल्पसंख्यक वर्गों के लिए शिक्षा
मज़हर हसनैन ,जेएनयू नई दिल्ली

भारत, धर्म, जाति, उप जाति के आधार पर कई समूहों में बँटा हुआ है। देश में सामाजिक वर्गीकरण की जड़ें बहुत गहरी है। इससे देश में जाति आधारित हिंसा तथा उच्च वर्गों द्वारा निम्न जातियों पर अत्याचार की घटनाएँ हमेशा घटती रहती है। संविधान निर्माताओं, जिसमें डॉ. बी. आर. आम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है, ने एक रचनात्मक कार्य नीति या आरक्षण नीति का प्रतिपादन किया। ताकि देश के पारंपरिक जाति व्यवस्था के दुष्प्रभाव को कम किया जा सके और स्वतंत्रता एवं शिक्षा के अधिकार से वंचित लोगों को वे सुविधाएँ मुहैया कराई जा सकें।
कुछ तथ्य
1921- मद्रास प्रेसीडेंसी ने गैर-ब्राह्मण समुदाय के लिए विशेष आरक्षण का प्रावधान किया।
1935 – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने एक संकल्प पारित किया जिसे पूना समझौता कहा जाता है। इसमें कमजोर वर्गों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र का प्रावधान किया गया।
1942 – डॉ. बी. आर. आम्बेडकर ने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की स्थापना की ताकि अनुसूचित जातियों को आगे बढ़ाया जा सके। उन्होंने सरकारी सेवा और शिक्षा में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की माँग की।
1947 – भारत को आजादी मिली। डॉ. आम्बेडकर को भारतीय संविधान की मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भारतीय संविधान में जाति, धर्म, रंग, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाई गई। परन्तु सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करते समय संविधान में “सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग की उन्नति” के लिए आरक्षण का विशेष प्रावधान किया गया है। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए संविधान में 10 वर्षों के लिए (जिसे संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रत्येक 10 वर्षों के लिए बढ़ाया जा रहा ) अलग निर्वाचन क्षेत्र का प्रावधान किया गया है।
1979- मंडल कमीशन की स्थापना की गई ताकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके। कमीशन के पास पिछड़े वर्ग की उप-जाति के लिए तथ्यपरक आँकड़े उपलब्ध नहीं है। पिछड़े वर्ग की जनसंख्या आँकड़े के लिए आयोग 1930 के जनगणना रिपोर्ट का प्रयोग कर रहा है। इसके अनुसार इस वर्ग की संख्या कुल जनसंख्या का 52 प्रतिशत है तथा इसके अंतर्गत 1257 जातियाँ पिछड़े वर्ग के अंतर्गत चिह्नित की गई है।
1980 में आयोग ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की और वर्तमान कोटा में बदलाव लाते हुए इसे 22 प्रतिशत से बढ़ाकर 49.5 प्रतिशत तक करने की सिफारिश की। वर्ष 2006 में पिछड़े वर्ग की सूची में जातियों की संख्या बढ़कर 2279 तक पहुँच गई जो मंडल कमीशन द्वारा तैयार सूची से 60 प्रतिशत अधिक है।
1990 - सरकारी नौकरियों में मंडल कमीशन की सिफारिशों को क्रियान्वित किया गया।
1991 - उच्च वर्ग की जाति के लोगों के लिए नरसिम्हा राव सरकार ने 10 प्रतिशत अलग आरक्षण व्यवस्था का प्रारंभ किया।
1992- अन्य पिछड़े वर्ग के लिए प्रस्तावित आरक्षण को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगित किया।
1998- केन्द्र सरकार ने विभिन्न सामाजिक समूह की आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को आँकने के लिए पहली बार राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण आयोजित किया।
2005 में 93वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से निजी शैक्षणिक संस्थाओं में अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के लिए आरक्षण को सुनिश्चित किया गया है।
2006 में केन्द्र सरकार के उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावदान किया गया। इस तरह संपूर्ण आरक्षण 49.5 प्रतिशत तक पहुँच गया।

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