http://www.misgan.com/shairi_h6.html www.misgan.com मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ |
मुनव्वर राना |
कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ जो भी दौलत थी वह बच्चों के हवाले कर दी जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं जिस्म पर मेरे बहुत शफ्फाफ़ कपड़े थे मगर धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगा अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता परिंदों के न होने से शजर अच्छा नहीं लगता धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको रोकना पड़ता है पलकों से समंदर मुझको इससे बढ़कर भला तौहीने अना1 क्या होगी अब गदागर2 भी समझते हैं गदागर मु्झको एक टूटी हुई कश्ती पे सफ़र क्या मानी हाँ निगल जाएगा एक रोज़ समंदर मुझको जख़्म चेहरे पे लहू आँखों में सीना छलनी ज़िंदगी अब तो ओढ़ा दे कोई चादर मुझको मेरी आँखों को वो बीनाई3 अता कर मौला एक आँसू भी नज़र आए समंदर मुझको इसमें आवारा मिज़ाजी का कोई दख़्ल नहीं दश्तो सहरा4 में फिराता है मुक़द्दर मुझको आज तक दूर न कर पाया अँधेरा घर का और दुनिया है कि कहती है 'मुनव्वर' मुझको तुम्हारे जिस्म की खुशबू गुलों से आती है ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है हमारी आँखों को मैला तो कर दिया है मगर मोहब्बतों में चमक आँसुओं से आती है इसीलिए तो अँधेरे हसीन लगते हैं कि रात मिल के तेरे गेसुओं से आते हैं ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया मुहब्बत ने कि तेरी याद भी अब कोशिशों से आती है |
Sunday, January 9, 2011
मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ मुनव्वर राना ,http://www.misgan.com/shairi_h6.html
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